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Showing posts from July, 2020

Shakuntala Devi,

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शकुंतला देवी: फ़ास्ट फ़ॉर्वर्ड मोड़ में बॉलीवुड का डबल तड़का!                 -ए॰ एम॰ कुणाल सोनी पिक्चर्स नेटवर्क्स इंडिया और विक्रम मल्होत्रा के बैनर तले बनी फ़िल्म शकुंतला देवी के साथ एक बार फिर से विद्या बालन ने छोटे पर्दे पर इंट्री मारी है। "ह्यूमन कंप्‍यूटर" के नाम से प्रसिद्ध समाजिक परंपराओं की जंजीरों को तोड़ने वाली शकुंतला देवी ने विश्व भर में भारत का नाम ऊँचा किया था। छोटी सी उम्र से जटिल गणित को चुटकियों में जुबानी हल कर देती थीं। गणित के जटिल सवाल को रिकॉर्ड समय में हल करने के कारण गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड उनका नाम दर्ज है। अमेजन प्राइम वीडियो पर विद्या बालन की फिल्म 'शकुंतला देवी' रिलीज हो चुकी है. फिल्म एक बायोग्राफिकल ड्रामा है, जिसमें 1934 से 2000 तक के शकुंतला देवी के जीवन सफर को दिखाने में फ़िल्म के निर्देशक अनु मेनन सफल रहे है। बायोपिक फिल्मों के साथ बॉलीवुड तड़का हमेशा देखने को मिलता है। इस फ़िल्म को मनोरंजक और दिलचस्प बनाने की कोशिश की गई हैं। शंकुतला देवी का गणित के साथ रिश्ता के अलावा उनकी पारिवारिक जिंदगी को बॉलीवुड डबल तड़का लगाकर फ़िल

Dil Bechara

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       दिल बेचारा: शुद्ध देसी रोमांस!           - ए॰ एम॰ कुणाल मुकेश छाबड़ा की डेब्यू निर्देशित फ़िल्म और सुशांत सिंह राजपूत, संजना संघी, सैफ अली खान द्वारा अभिनीत "दिल बेचारा" कैंसर पीड़ित दो लोगों की कहानी है। जिसमें एक हंसमुख और बिंदास लड़का है, जो एक कैंसर पीड़ित लड़की के लिए नई रोशनी बनकर आता है।यह फ़िल्म डिज्नी हॉटस्टार पर रिलीज हो चुकी है।  फॉक्स स्टार स्टूडियो और डिज्नी हॉटस्टार ने इस फिल्म को सभी दर्शकों के लिए फ्री कर रखा है। दिल बेचारा फ़िल्म के लिए हॉटस्टार पर किसी तरह का सब्सक्रिप्शन नहीं लेना होगा। अमेरिकी उपन्यासकार जॉन ग्रीन के फेमस नोवेल "द फ़ॉल्ट इन अवर स्टार्स" पर मुकेश छाबड़ा ने शुद्ध देसी अन्दाज़ में "दिल बेचारा" बनाया है। इससे पहले इस कहानी पर हॉलीवुड फिल्म 'द फॉल्ट इन आर स्टार्स' के नाम से बन चुकी है। इसके बावजूद दिल बेचारा इस साल की सबसे प्रतीक्षित फ़िल्म है, जिसका दर्शकों को बेसब्री से इंतजार था। जो लोग जोश बुने की फिल्म 'द फॉल्ट इन आर स्टार्स' देख चुके है, उन्हें इस शुद्ध देसी फ़िल्म में कई ख़ामियां

Breathe: Into the Shadows

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ब्रीद: जूनियर बच्चन का डबल तड़का!                     -  ए॰ एम॰ कुणाल ब्रीद का दूसरा सीज़न रिलीज़ हो गया। इसके साथ ही अभिषेक बच्चन ने अपना डिजिटल डेब्यू भी कर लिया। मयंक शर्मा इस बार साइको थ्रिलर वेब सीरीज़ लेकर आए हैं। पहले सीज़न से थोड़ा हटकर  कहानी एक ऐसे दंपति के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसकी बेटी का अपहरण हो जाता है। अपहरणकर्ता फिरौती के बजाय लड़की के पिता अभिषेक बच्चन से हत्या करवाता है। अमित साध अपहरणकर्ता के चेहरे से नक़ाब उतारते, उससे पहले ही निर्देशक और कहानीकार मयंक शर्मा  मर्डर मिस्ट्री का सस्पेंस  पांचवे एपिसोड के अंत में खोल देते है, जब अपहरणकर्ता का राज खुल जाता है।  "ब्रीद : इनटू द शैडो" अभिषेक बच्चन के साथ नित्या मेनन का भी डिजिटल डेब्यू है। अभिषेक एक मनोचिकित्सक की भूमिका में हैं। जबकि नित्या मेनन ने  सेफ़ का किरदार निभाया है।अभिषेक को स्प्लिट पर्सनालिटी का शिकार दिखाया गया है। वह अपने अंदर के अच्छा और बुरा आदमी के साथ दोहरी ज़िंदगी जीते है। जैसा कि हर बार होता है सीरीज़ के अंत में अच्छे इंसान की जीत होती है। आख़िरी एपिसोड में अभिषेक ने स्प्लिट पर्स

Vladimir Putin Vision 2036

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            पुतिन का विजन 2036                  - ए॰ एम॰ कुणाल एक समय जैसे भारत में "इंदिरा इज़ इंडिया" एंड "इंडिया इज़ इंदिरा" कहा जाता था आज रूश में पुतिन के लिए कहा जाता है। ऐसा लगता है कि  "पुतिन-मेदवेदेव की टैंडेमोक्रेसी" डील के तहत सत्ता की जो चाभी व्लादिमीर पुतिन के हाथ लगी थी, वह कभी पुरानी नहीं होने वाली है। रूश के संविधानिक संशोधन के बाद स्टालिन को पुतिन पीछे छोड़ सकते है,  जिन्होंने सोवियत संघ पर लगभग तीन दशकों तक राज किया था। अब पुतिन के लिए 2036 तक सत्ता में रहने का रास्ता साफ़ हो गया है। एक गुमनाम जासूस से लेकर रुस के राष्ट्रपति बनने तक का व्लादिमीर पुतिन का सफ़र काफ़ी उतार-चढ़ाव भरा रहा है। जब 2000 मे पुतिन ने सत्ता संभाली थी, तो उन्हे विरासत में विघटन की कगार पर खड़ा एक ऐसा देश मिला, जिसपर गर्व करना किसी भी युवा रुसी के लिए मुश्किल था। येल्तसिन के कार्यकाल में भ्रष्टाचार चरम पर पहुंच गया था, सड़को पर आए दिन खून-खराबा और लूट-पाट की वारदातों का होना आम बात थी। कुलीन तंत्रा का बोलबाला था। रुबल की कोई कीमत नही रह गयी थी। अलगाववा

Political Dynasties

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भारतीय राजनीति में वंशवाद का डेजा बू                  -ए एम कुणाल                                                                                                                             लगता है कि सुशांत सिंह राजपूत की मौत के बाद बाॅलीवुड में परिवारवाद पर जारी जंग ने राजनीति को पीछे छोड़ दिया है। 2019 के हार के लिए राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं के पुत्र मोह को हार का मुख्य कारण बताकर वंशवाद की राजनीति पर जो सवाल उठाए थे, अब उसपर कोई बहस नहीं होता है। राहुल ने साफ तौरा से पी0 चिदंबरम, कमलनाथ और अशोक गहलोत का नाम लेते हुए कहा था कि इन नेताओं ने पार्टी हित से ज्यादा अपने पुत्र प्रेम को तवज्जों दिया। राहुल के बंद कमरे के अन्दर कही गई बात के बाहर आ जाने से इस मामले को और भी तूल मिल गया। अपने कई साक्षात्कार में वंशवाद को जायज ठहराने वाले राहुल गांधी का यह बयान वाकई में काफी दिलचस्प है। हालांकि इस बात का जवाब भाजपा के पास भी नहीं है कि अगर राहुल गांधी की पराजय वंशवाद की हार है, तो वरुण गांधी की जीत के मायने क्या है?  लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की करारी हार के बाद वंशवाद के म