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Showing posts from June, 2020

Manhood Trade

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             कोरोना काल में भी  फल-फूल रहा है मर्दानगी का व्यापार !                       -ए॰ एम॰ कुणाल  कोरोना के इस युग में, जबकि पूरी दुनिया आर्थिक मंदी के दौर से गुजर रही है, मर्दानगी का व्यापार तेजी से फैल रहा है। ग़रीबों का एंटर्टेन्मेंट कहा जाने वाला सेक्स को कपल्स के आपसी संबंधों का आधार माना जाता है। सेक्स के कारण रिश्ते बनते और बिगड़ते है। आज के दौर में कपल्स के पास एक दूसरे के लिए समय ही समय है, ऐसे में रिश्तों को बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। मार्च- एप्रिल के महीने में लोगों ने लॉकडाउन  को इंजॉय किया पर अब 24 घंटे का साथ ज्यादतर कपल्स के लिए डिप्रेशन का कारण बनता जा रहा है। यही कारण है कि मर्दानगी अथवा पुंरूषत्व बढ़ाने के नाम पर चल रहे कारोबार ने एक उ़द्योग का रुप ले लिया है। इस काम में झोला छाप डाक्टरो से लेकर राष्ट्रीय और बहुराष्ट्रीय कंपनियां लगी हुई है। आपको अखबारों और पत्रिकाओं के अलावा राह चलते इस तरह के विज्ञापन जगह जगह देखने को मिलेगें। इन विज्ञापनो में यौन क्षमता या यौन सुख बढ़ाने के लिए सस्ते इलाज और तरह-तरह के आकर्षक नामो वाली दवाइयों का जिक्र रहता है। यौन संबंधी

#BhonsleTheMovie

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                   इतना सन्नाटा क्यों है भाई...                               ए॰ एम॰ कुणाल अगर फ़िल्म शोले का ए० के० हंगल साहब का डायलॉग "इतना सन्नाटा क्यों है भाई", आप भूल चुके है तो "भोंसले" ज़रूर देखें। मनोज बाजपेयी मुंबई के शोर को अपने अंदर समेटे एक साठ साल का एंग्री यंग मैन का रोल प्ले कर रहे है, जो बग़ैर एक शब्द कहे आपको एहसास करा देगा कि "बुड्ढ़ा होगा तेरा बाप!" जब-जब लगता है कि मनोज बाजपेयी का समय पूरा हो गया है, वे "गैंग्स ऑफ वासेपुर" और  "अलीगढ़" जैसी फ़िल्म लेकर आ जाते है। अपने डायलॉग डिलीवरी के लिए मशहूर मनोज फ़िल्म भोंसले बिल्कुल नए अंदाज़ में दिख रहे है। उनकी ऐक्टिंग को देख कर लगेगा कि डायलॉग राइटर की ज़रूरत ही नहीं है। इस फ़िल्म में मनोज बाजपेयी ने शब्द से ज़्यादा बॉडी लैंग्वेज पर ज़ोर दिया है। भोंसले के किरदार को समझने के लिए दर्शकों को काफ़ी मेहनत करनी पड़ेगी। भोंसले के कई रंग देखने को मिलेंगे। शांत सा रहने वाला भोंसले पटाके की आवाज़ पर चिड़चिड़ा हो जाता है। सच्चाई के लिए आवाज़ उठाने वाला भोंसले नौकरी के लिए अपने

Rasbhari

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           ओ रसभरी कल फिर आना...                        -ए॰ एम॰ कुणाल रसभरी के टेलर को लेकर स्वरा भास्कर और उनके पिता के ट्वीट को लेकर ट्रोल आर्मी की ट्रोलिंग के बीच अमज़न  प्राइम वीडिओ पर वेब सीरीज़ "रसभरी" रिलीज़ हो गई है। स्वरा के फ़ैन को ये जानकर ख़ुशी होगी कि ट्रोल आर्मी के लोग जो अश्लीलता सोशल मीडिया पर  फैला रहे है, उसका 5% भी इस वेब सीरीज़ में नहीं है। ये वेब सीरीज़ स्वरा भास्कर की  "अनारकली" और श्रद्धा कपूर की "स्त्री" का कॉक्टेल है। स्त्री का फ़ेमस लाइन था,  "ओ स्त्री कल आना" और रसभरी को देख कर दर्शक कहेंगे "ओ रसभरी कल फिर आना!" आठ एपिसोड में बनी इस वेब सीरीज़ में भूत वाला एंगल भी है पर रसभरी से दर्शकों को डर नहीं लगेगा बल्कि प्यार हो जाएगा। हालांकि वेब सीरीज़ का नाम "रसभरी" है पर कहानी इंगलिश टीचर शानू बंसल और उसके स्टूडेंट नंद (आयुष्मान सक्सेना) की है। स्वरा भास्कर ने इंग्लिश टीचर के अलावा 1857 के जमाने की एक तवायफ़ रसभरी का रोल निभाया। निखिल नागेश भट्ट के निर्देशन में बनी इस सीरीज की कहानी एक टीनेज लड़के

Aarya Web Series

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              बड़े अच्छे लगते है ये धरती, ये नदिया, ये रैना और सुष्मिता सेन...                          ए॰ एम॰ कुणाल  सुष्मिता सेन ने  राम माधवानी फिल्म्स और हॉटस्टार की वेब सीरीज़ “आर्या” के  ज़रिए एक दशक  बाद अभिनय की दुनिया में वापसी की है। इससे पहले 2010 में आयी “नो प्रॉब्लम” उनकी आख़िरी हिंदी फ़िल्म है।  वैसे 2015 में बंगाली फ़िल्म “निर्बाक” में काम किया था।   आर्या डच टीवी सीरीज़ “पेनोज़ा” का रीमेक है। सुष्मिता मेन रोल में हैं।  सुष्मिता  के अलावा  चंद्रचूड़ सिंह और  जयंत कृपलानी  ने भी लम्बे समय बाद अभिनय की दुनिया में वापसी की है।   सुष्मिता  सेन ने इस सीरीज के साथ दमदार वापसी की है। इससे बेहतर कम बैक नहीं हो सकता था। आर्या एक क्राइम ड्रामा है जिसे कुल 9 एपिसोड है। हर एक एपिसोड करीब 50 मिनट का है। हर एक एपिसोड आपको अंत तक बांधे रखने में सफल रहा है। ये वेब सीरीज एक क्राइम ड्रामा है, जिसकी कहानी राजस्थान की पृष्ठभूमि पर गड़ा गया है। राजस्थान के गॉडफादर जोरावर ( जयंत कृपलानी) का दवा का कारोबार है। जिसकी आड़ में वह  गैरकानूनी काम करता है। वो अफीम की खेती करता

Nehru calling Nehru

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                    लद्दाख़: नेहरू कॉलिंग नेहरू!                                        -ए॰ एम॰ कुणाल पहले डोकलाम और अब लद्दाख़! कब तक इंच-इंच पीछे हटते रहेंगे? कब तक पंडित नेहरू के कंधे पर बंदूक़ रख कर चलाते रहेंगे? नेहरू से इतिहास सवाल करेगा और उसे करना भी चाहिए। वर्तमान हर बात के लिए सरदार पटेल की अदालत में नेहरू को कठघरे में क्यों खड़ा कर रहा है? गलवान घाटी के खूनी संघर्ष ने एक बार फिर से भारत-चीन विवाद के जीन को बोतल से बाहर निकाल दिया है। हालांकि दोनों देशों की सरकारें बोतल के ऊपर कॉर्क लगाने की कोशिश में है। जबकि व्हात्सप्प यूनिवर्सिटी के लोग नेहरू को आपकी अदालत के लिए समन भेजने की तैयारी कर रहे है। व्हात्सप्प यूनिवर्सिटी के छात्रों के जानकारी के लिए बता दूँ, "गलवान वैली" को पंडित नेहरू ने अपने हाथ से जाने नहीं दिया था। ये वैली 1962 से भारत के कब्जे में है। गलवान घाटी मामले में भारतीय आर्मी का कहना है कि भारत-चीन सीमा पर सोमवार की रात दोनों देशों की सेना में ज़ोरदार संघर्ष हुआ है जिसमें सेना के एक अधिकारी और दो सैनिकों की मौत हो गई है। जबकि गलवान घाटी में हुई

Sushant Singh Rajput

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                      सुशांत सिंह राजपूत: काई पो चे!                                             -ए॰ एम॰ कुणाल सुशांत सिंह राजपूत के मुंबई के बांद्रा स्थित अपने घर में खुदकुशी की ख़बर वाक़ई में हैरान करने वाली। महज़ 34 साल की उम्र में अपने करियर के इस पड़ाव पर दुनिया को अलविदा कहने वाले वाले सुशांत की मैनेजर रह चुकीं दिशा सालियान की भी 8 जून को मौत हो गई थी, जिसे खुदकुशी बताया जा रहा है।ये महज़ इत्तफ़ाक़ है या कुछ और..? 2013 में "काई पो चे" अपने फिल्‍मी करियर की शुरुआत की थी। "काई पो चे" से "छिछोरे" तक के छोटे से फ़िल्मी सफ़र में सुशांत अपनी ऐक्टिंग का लोहा मनवा चुके थे।  #KaiPoChe के फिल्म प्रमोशन के समय की एक तस्वीर है! मीडिया इंटरव्यू के बाद फुरसत के कुछ पल में ली थी। उस तस्वीर को बार-बार देख रहा हूँ। मुझे अभी भी याद है अभिषेक कपूर ने कहा था, "इस तस्वीर को सम्भाल कर रखना बहुत मूल्यवान है।" वास्तव में आज इसका महत्व समझ में आ रहा है। लेकिन इस तस्वीर को एक तरह से साझा करना पड़ेगा, कभी सोचा न था। पिछले 12 वर्षों में, मुझे कई कलाकारों क

Gulabo Sitabo

गुलाबो सिताबो की लखनवी तहजीब "पहले मैं, पहले मैं"                                                     -ए॰ एम॰ कुणाल गुलाबो सिताबो फ़िल्म देखने के बाद एक बार फिर कहना पड़ेगा कि बुड्ढ़ा होगा तेरा बाप। शूजित सरकार की गुलाबो सिताबो की कहानी का मुख्य किरदार लखनऊ की फ़ातिमा हवेली है। लखनवी तहज़ीब के बजाय वहाँ की कला एवं संस्कृति में रची-बची गुलाबो-सिताबो कठपुतली के झगड़ों की रोचक कहानी को आधार बनाया गया है। इसलिए  'पहले आप-पहले आप' की लखनवी तहजीब का एक भी उदाहरण इस फ़िल्म में देखने को नहीं मिलेगा ! फ़िल्म की कहानी 78 साल के लालची और चिड़चिड़े स्वभाव के मिर्ज़ा के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसकी जान उस हवेली में बसती है। मिर्ज़ा की बेगम फातिमा की पुश्तैनी हवेली है। मिर्ज़ा पैसों के लिए हवेली की पुरानी चीज़ों को चोरी से बेचता रहता है। मिर्ज़ा को अपने से 17 साल बड़ी फातिमा के मरने का इंतज़ार है। इस हवेली में बहुत से किराएदार भी रहते हैं, इन्हीं में से एक हैं बांके रस्तोगी (आयुष्मान खुराना)। बांके अपनी मां और तीन बहनों के साथ रहता है। बांके एक आटा चक्की की कमाई से अपना घर क

इरफान खान

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लॉकडाउन की वजह से अपनी मां की अंतिम यात्रा में शरीक नहीं हो पाए इरफ़ान खान को जब दो साल पहले अपनी बीमारी का पता चला था, तो अपने फ़ैन के साथ ख़ुद ख़बर शेयर करते हुए कहा था- "मुझे यकीन है कि मैं हार चुका हूँ....” अपने ज़िंदादिल अदा के लिए मशहूर इरफान खान कैंसर से जंग हार गए! आज वो हमारे बीच नहीं रहे पर उनके ज़िंदादिली का एक क़िस्सा आज शेयर करना चाहूँगा!  यूँ तो इरफ़ान खान की कई फ़िल्मों का PR और प्रमोशन किया है पर 'पान सिंह तोमर’ फ़िल्म के दौरान उन्हें क़रीब से जानने का अवसर मिला था! इस फ़िल्म से उन्हें काफ़ी उम्मीद थी! पहला हफ़्ता फ़िल्म नहीं चली तो वे दोबारा प्रमोशन में जुट गए! कोई टीवी चैनल और मीडिया हाउस हमने नहीं छोड़ा! इरफ़ान की मेहनत रंग लाईं और फ़िल्म सुपर हिट हो गई! उस फ़िल्म के बाद उनके साथ अच्छी बॉन्डिंग हो गई थी! अब बात उस अनकही क़िस्से की... "लंच बॉक्स" फ़िल्म के रिलीज़ के एक हफ़्ते बाद एक बुक लॉंच इवेंट की घटना आज याद आ रही है, जब इरफ़ान ने मेरी क्लास लगा दी थी! मौक़ा था गुजरात के एक आईएएस ऑफ़िसर के बुक लॉंच का! मैं PR देख रहा था! काफ़ी गेस्

मीडिया की नान-पॉलिटिकल भक्ति

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              मीडिया की नान-पॉलिटिकल भक्ति                                                 - ए एम कुणाल जिस तरह से मोदी भक्त खुलकर अपनी भक्ति व्यक्त करने में लगे है। ऐसे में लोकतंत्र का चौथा स्तम्भ अगर केदारनाथ की गुफा या 7-लोक कल्याण मार्ग का एक स्तम्भ बनकर रह जाए,  तो इसकी चिंता भला किसे है ? भक्तों को इसमें कोई खामी भी नजर नहीं आती है। उनकी भक्ति पर सवाल करने की हिम्मत भला किसमें है? वे अपने प्रभु को आवाज देंगे और प्रभु पाकिस्तान का वीजा हाथों में लेकर सामने प्रकट हो जाएगें। अगर ‘आम और फकीरी’ वाले सवाल से ‘सास-बहू’ वाले सवाल की तुलना करें, तो गोदी मीडिया कहीं गलत नहीं है। सवाल भक्ति का नहीं है। खुलकर भक्ति करो, किसने रोका है? सवाल उस भक्ति की कीमत पर है। हिटलर का साथी और नाज़ी मीडिया प्रभारी जोसेफ गोएबेल्स के प्रभाव में आकर जर्मनी ने क्या कीमत अदा की, ये आज बच्चा-बच्चा जानता है। क्या हम भी जर्मनी की राह पर जा रहे है ? जब आने वाली पीड़ी भक्तिकाल पर रिसर्च के सिलसिले में आपसे सवाल करेगी तब आप क्या जवाब दोगें ? कलम की स्याही का रंग भगवा कैसे हो गया? आपके सवाल के पेपर मोदीजी क